बंद ताले की दो
चाबियाँ
और वो जंग लगा ताला
आज भी बरसों की भाँति
उसी गेट पर लटका है
और वो जंग लगा ताला
आज भी बरसों की भाँति
उसी गेट पर लटका है
चाबियाँ टूट रहीं है
तो कभी मुड़ जा रहीं हैं
उसे खोलने के दौरान ।
अब वो उन ठेक लगे हाथों की
मेहनत भी नहीं समझता
जिन्होंने उसे एक रूप दिया
उन ठेक लगे हाथों की
मेहनत की कीमत से दूर वो
आज महत्वाकांक्षी बन गया है
अपने अहं से दूसरों को दबाकर
स्वाभिमान की कीमत गवां रहा है...
दीप्ति शर्मा,
बी.टेक
आगरा.
बहुत बेहतरीन
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
आज की चर्चा : ज़िन्दगी एक संघर्ष -- हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल चर्चा : अंक-005
हिंदी दुनिया -- शुभारंभ
बहुत सुन्दर रचना ........