न मिलकर उदास हुआ करो
न उदास होकर मिला करो
मैं उम्र का वोह पल हूँ
मुझे दिल से तुम जिया करो
लौट कर फिर न आउंगा
जिन्दगी में कभी किसी की
मैं तो आब-ए हयात हूँ
घूट घूट करके पिया करो
कही फट गया हूँ इस कदर
कही उधड़ गया हूँ उस कदर
मैं फटी हुई किताब-ए-जिन्दगी
आहिस्ते-आहिस्ते सिया करो
मेरा मोल कोई पा न सका
मुझे बेचना किसी के बस में नही
मैं अनमोल हूँ मैं अबूझ भी
कद्र हर पल की तुम किया करो
कभी बुरा हुआ हैं मैं इस कदर
हो गया इंसान दर-बदर
जब कभी अच्छा भी हुआ अगर
मगरूर तुम न कभी हुआ करो
न मिलकर उदास हुआ करो
न उदास होकर मिला करो
मैं उम्र का वोह पल हूँ
मुझे दिल से तुम जिया करो.

achchi panktiyaan...