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श्रद्धा जैन
--श्रद्धा जैन,
सिंगापूर
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वो सुख तो कभी था ही नहीं
फिर किसी से दिल लगाया जाएगा
वो सारे ज़ख़्म पुराने, बदन में लौट आए
मालूम न था हमको
मुश्किलें आएँगी जब, ये फैसला हो जाएगा
तेरे बगैर लगता है, अच्छा मुझे जहाँ नहीं
ऐसा नहीं कि हमको मोहब्बत नहीं मिली
अज़ीब शख़्स था, आँखों में ख़्वाब छोड़ गया
कोई पत्थर तो नहीं हूँ , कि ख़ुदा हो जाऊँ
कितना है दम चराग़ में, तब ही पता चले
हो एक ऐसा शख्स जो, मोहब्बत-ओ-वफ़ा करे
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